Monday, November 8, 2010

115 glorious years of X-RAYS

Hundred and fifteen years ago when accidentally William Conrad Roentgen discovered some unknown radiations, he wouldn't have thought for a moment then of the explicit discovery he'd made.  He himself was so unaware of their significance  that he gave them the name X- Rays.  Years later it's importance was realized and it proved to be a revolution for mankind.  The ability of X-Rays to penetrate through substances and reveal their images has worked wonders for humanity.  Be it the revelation of inner structure of various crystals or the area of diagnostic radiography, it has proved to be a boon.  Despite of the emergence of various new and more advanced and sophisticated technologies X-Rays are still firmly holding their ground.  We are very grateful to Roentgen for his serendipity and the gift he gave us.

P.S. - Though now is the time to find out a better version of x-Rays to look into the souls of human beings.

Friday, October 29, 2010

बिल्लियाँ

जो चले गए !!!!

पिछले कुछ दिनों से हमारे घर में एक बिल्ली और उसके प्यारे से नन्हे से बच्चे ने डेरा डाल रखा है. कुछ महीने पहले भी वह बिल्ली अपने दो छोटे बच्चों के साथ आई थी.  तब माँ ने उनका बहुत ख्याल रखा था. उन्हें दिन में दो से तीन बार खाना देना आदि का माँ काफी ख्याल रखती थीं.  वो दोनों बच्चे थे भी बड़े चंचल और नटखट, दिन भर इधर से उधर फुदकते रहते थे.  धीरे-धीरे हमारी भी ऐसी आदत बन गयी थी कि उन्हें देखे बिना दिन पूरा नहीं होता था.  वो भी बड़े समझदार थे और हम लोगों को देखते ही अपनी कारगुजारियां शुरू कर देते थे.  गमले में पड़ी मिटटी खोद देना, पेड़ों पे चढ़ जाना, आपस में उठा-पटक करके वो हमारा ध्यान आकर्षित करने कि कोशिश किया करते थे.  उनकी माँ भी हमसे निश्चिंत होके धूप सका करती थी.  अभी हमारा रिश्ता खिल ही रहा था कि उसे किसी कि नज़र लग गयी और वो दोनों बच्चे एक-एक करके गायब हो गए.  हमने खोजने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं मिले.  फिर एक दिन हमारे यहाँ काम करने वाली ने बाते की उसने उनमे से एक की लाश पीछे के मैदान में देखी है.  दूसरे का कुछ पता नहीं चला.  अभी हमारे मन पे पड़ी उनकी छाप हल्की हो ही रही थी की एक सुबह माँ ने एकदम से हमे उठाया और बोला की बिल्ली एक नए बच्चे को लेकर आई है.  माँ की ख़ुशी देखते ही बनती थी.  ये बच्चा पहले वाले दोनों बच्चों के मिश्रण जैसा है.  इसका फुर पे मानो उन दोनों की परछाईं पड़ी थी.  मासूम से चेहरे और कौतुक भरी नज़रों से उसने आते ही माँ का दिल जीत लिया था.  माँ ने इस बार देर ना करते हुए ज्यादा सुरक्षात्मक होकर उनके लिए एक छोटे से आशियाने का निर्माण कर दिया है.  इसमें वो ठण्ड से और अन्य परेशानियों से बचे रहेंगे.  माँ ने इस बार भी अपनी जिम्मेदारियां संभल ली है.  आशा करते हैं इस बार ईश्वर उस बच्चे को सुरक्षित रखेंगे. 


नयी दस्तक 

Thursday, October 28, 2010

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी हमेशा तंग रास्तों से होकर ही नहीं गुज़रती, कई फासले ये हरे भरे मैदानों  के बीच से भी तय करती है.  कुछ पल अगर चिलचिलाती धूप में जलना पड़ता है तो अगले पल बारिश कि नरम बूँदें भी मिलती हैं.  ज़िन्दगी के सफ़र कि इस कशिश ने ही तो हमे बाँध रखा है.  रोज़मर्रा कि दौड़-धूप, खिचखिच के बीच ख़ुशी का एक हल्का नरम झोका भी माथे कि लकीरों को एक  भीनी सी मुस्कान में बदल देता है.  इस भीनी सी मुस्कराहट के लिए हमें खासी मशक्कत भी नहीं करनी होती, बस कुछ आसपास देखना होता है.  मेजों कि दराजों में, पुरानी कमीज़ कि जेब में, फाइलों के ढेर में या ऐसी ही किन्हीं जगहों में जिन्हें हमनें बेकार समझ कोने में फेंक रखा है.  इनके अलावा खुशियों के ये झोके सुबह कि झीनी सी सिहरन ओढ़े हवा के संग, भोर के स्लेटी आसमान में फूटती किरण के संग, रात कि स्याही में चमकते चाँद के संग भी आतें हैं.  प्यार भरी माँ कि वो एक नज़र, आशीर्वाद के लिए उठा पिता का हाथ, भाई-बहिन का दुलार और दोस्तों का मनुहार हमारे मुरझाये चेहरे पे जान फूंक जाते हैं.  ज़िन्दगी कि इतनी सलाहितों के बाद भी गर हम उसे दोष देते हैं तो इसमें बेचारी ज़िन्दगी का तो कोई कुसूर नहीं है. 

Friday, July 9, 2010

Prophecy Unleashed

Besides the fever injected by the FIFA world cup series there is a parallel yet more effective craze enthralling people around the world.  Yeah you are right its the prophecies made by the one of its kind and the very first 8-legged babaji "Paul".  Out of the 12 predictions that he made so far 11 came to be true eventually.  Now the whole world is looking at him for some more and lo and behold he predicted Spain as the favorite for the title.  How much he can hold this time we'll know on 11th of July when the ball will roll.  But the basic discussion that this phenomenon gave birth to is, that even though we boasts ourselves to be technically and scientifically superior than our ancestors,  yet to our very core we are still bounded by the fear of future.  We some how just want some one to tell us what our future holds.  Every time we go to roadside babaji or a palmist or animals like Paul which in our country our replaced by parrots picking on cards to know the outcome of our steps.  And we can't say that only the less educated and backward people are more into it, because we have examples of the so called modern well educated superior persons holding on to such things.  The thing is not that we believe in fact the truth is that deep down we know no one has the key to the future, even then we run to get some.  As big as it could be, real question is why the prophets (so called) aren't able to predict their own future and change it. The answer is they can't as they are not Bruce Almighty, they are just like us.  This is one long discussion that has been going on for decades, yet it cannot end  because of the inherent human fear of the  future.  All we can do at this time is to see what future holds for Paul baba himself, as now he faces a competitor an Indian Prophet Mani baba.

AESTIVATION

A lot of animals around the world follow a pattern in their life.  They either go for hibernation (winter sleep) or aestivation (summer sleep).  This helps them in rejuvenating their body organs, growth and all that will help them in their further survival.  We the humans on other side don't have any such thing.  We go for a 12 month work cycle neglecting our survival needs.  This is the major cause of various kinds of stresses, ailments and various other dysfunctions.  Then we run towards faster ways of improvement so that we can keep ourselves in the RAT race.  Its time for us to stop and take some moments off of our busy schedule and rejuvenate our inner core.  I mean take examples of the tribes that are left and are unperturbed by the outer world.  They always chalk out space for recreation, redemption and in knowing the very nature we live in.  They have better ways of fighting breakdowns we encounter everyday.  This is all because they believe in the concept of aestivation or hibernation and they follow.

Sunday, June 13, 2010

लय

दो लम्हों कि मुलाक़ात में मेरी साँसों कि लय बदल दी,
जाने क्या हो गया है मुझे बिन छुए वो क्या कर गयी,
पलकों कि रेशम आँखों के करघे पे उसके ही सपने बिनती है,
मेरी बेजा धड़कन को वो अपने अरमान दे गयी...

Saturday, May 29, 2010

पनाह

ठहरे हुए लफ़्ज़ों को सोचता हूँ,
तेरा पता दे दूँ,
कोने में सुलगती यादों को,
थोड़ी हवा दे दूँ,
मिल जायेंगी तेरी सांसें,
मेरी साँसों में,
आ तुझे अपनी बाहों में पनाह दे दूँ.

Monday, May 24, 2010

kathni aur karni ka fark

this is what we say and what we want others to achieve.  now have a look at what we do!!!


Thursday, May 20, 2010

ज़िन्दगी

मुट्ठी में अरमानों कि ठंडी राख,
साँसों कि उलझी सी साख,
मिल जायेगी धडकनों को आवाज़,
थोड़ी सी ज़िन्दगी दे दे.

Monday, April 5, 2010

दाने

भींच रखी है मुट्ठी मैंने,
वक़्त को फिसलने से रोकने को,
दाने दाने कर वो फिर भी खिसक रहा,
उड़ उड़ के साँसों के संग,
आँखों में है धस रहा.

Friday, April 2, 2010

नशा

मैंने तुझको देखा है जब से ,
कुछ खो गया है मुझसे ,
हर लम्हा तेरी तलब सी है ,
बदली नहीं है ज़िन्दगी ,
फिर भी अलग सी है.

Thursday, April 1, 2010

राही

लफ़्ज़ों के समंदर का राही हूँ,
कागज़ पे बिखरी स्याही हूँ,
हूँ अक्स अपने ही अरमानो का,
कुछ उम्मीदों का साकी हूँ.


खेलते हैं जज़्बात मेरे सीने में,

ठहरे हैं अश्क आँखों के ज़ीने में,
है जो ये जाल साँसों का,
कुछ निकला हूँ उससे कुछ बाकी हूँ

किस्सा

ज़िन्दगी को जब देखा करीब से,
तो     ये      एहसास     हुआ,
हँसना  रोना गिरना संभलना,
यही    तो     ज़िन्दगी     है,
फिर   भी   डरते    हैं    हम ,
जाने किससे या शायद खुद से ,
कहीं कुछ गलत ना हो जाए,
कुछ    टूट     ना     जाए ,
कुछ    छूट     ना     जाए.



Wednesday, March 31, 2010

आरज़ू

चमकते ख़्वाबों की रोशनी से ,
अरमानों के घर सजायेंगे,
और कुछ ना हो सका अगर,
एक दूजे का साथ निभाएंगे,
मुमकिन है ये आरज़ू मेरी,
ज़िन्दगी मुझे ये तो बता.

सिसकियाँ

अपनी तो बाकी ऐसे ही गुज़र जायेगी,
ना सही कोई, तन्हाई साथ निभाएगी,
अपने जीने की रकम युहीं अदा करेंगे,
सिसक लेंगे चुपके से बेजान रातों में.

Wednesday, March 24, 2010

घर

जिन्हें ढूँदती हैं नज़रें ये वो मंज़र नहीं है,

ना हमसफ़र ना हमराह कोई ये वो राह-ए-सफ़र नहीं है,

मैंने तो ख्वाब देखा था गुलिस्ताँ में आशियाँ का,

हर तरफ बिखरी हैं यहाँ लाशें ये वो घर नहीं है.

Tuesday, March 23, 2010

लम्हे

गुपचुप खिसकते लम्हों ने ,
देखो ये क्या कर दिया है ,
जो था जुदा सा मुझसे ,
उसे मुझसा कर दिया है.

Monday, March 22, 2010

कुछ अल्फाज़

पैबस्त हैं दिल में यादें तेरी, करता हूँ जिनसे मैं बातें तेरी,
अब तो एहसास तेरा हवाओं में है, दूर है तू फिर भी निगाहों में है,
मेरी रगों में तेरा प्यार बहता है, धडकनों को तेरा इंतज़ार रहता है,
है चेहरा तेरा दिल की हर एक दीवार पे , और बैठे हैं ख्वाब तेरे मन के हर एक तार पे,




Sunday, March 21, 2010

मंज़र

निगाहें  बहुत देर एक मंज़र पे ठहरी रही,
पलके जो झपकी ज़रा सी वो मंज़र कहीं नहीं,
कौन कहता है जो चाहो वो तुम्हे मिल जाएगा,
हसीं लम्हा ये ज़िन्दगी का सभी को मयस्सर नहीं. 

चिराग तले अँधेरा



एक कहावत जो माँ से सुनी थी आज उसके अस्तित्व को महसूस किया है. इससे चिराग की बदकिस्मती कहिये या उसकी नाकामी.  वो चिराग जो अपनी सीमित शक्ति के बावजूद दूसरों को रास्ता दिखता है अपने अन्दर एक घना अँधेरा छुपाये होता है. ऐसा ही कुछ मै अपने आसपास देख सकता हूँ.  एक विभाग जो की अपने मूल रूप में सम्प्रेषण का घर है, वहां स्वयं सम्प्रेषण नामक वस्तु का आभाव है.  कोई किसीसे कुछ बोल नहीं सकता क्योकि विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यहाँ लागू नहीं होती.  आप नहीं जान सकते की ऐसा क्यूँ है.  हाँ अगर आपने धरा के विपरीत जाने की कोशिश की तो मूह की खानी पड़ सकती है.  सारा सम्प्रेषण एक्मार्गीय है. खैर जैसे इस दुनिया की यानि की सम्प्रेषण की दुनिया की बाकि समस्याएँ दूर हुई है इस समस्या का भी कोई न कोई हल तो अवश्य होगा. जरुरत है उस चिराग को चिराग दिखाने की. 

Friday, March 19, 2010

कोयल और बौर

कब चुपके से पतझड़ की ओट लेकर गरमी घर तक आ गयी पता ही नहीं चला. हरे भरे पेड़ पलक झपकते ही बूढ़े नज़र आने लगे.   सर्दियों की कुनकुनी धूप में हौले से एक जलन शामिल हो गयी है.  इस बदलते मौसम ने जहां कुछ चीजों को छीना वहीँ कुछ तोहफे  भी दिए हैं.  इन सौगातों में आम की बौर की महक और कोयल की रूहानी आवाज़ सबसे कीमती है.  अपने प्यार को तलाशती कोयल बौरों की महक को उसकी खुशबू समझ लेती है.  इस धोखे में वो बेचारी सारा वक़्त तपती दोपहरिया में उसे पुकारती फिरती है. प्यार की ये पुकार सारे वातावरण को रूमानी बना देती है.  कोयल की बेचैन खोज ने बौरों को तो नया रूप दिया पर वो खुद अकेली रह गयी.  साल दर साल भटकते रहने पर भी उसका प्यार मुक्कम्मल न हो सका. प्यार की अक्सर यही परिणति होती है, वो वफ़ा और कुर्बानी की आंच में तप के भी बजाय कुंदन होने के राख हो जाता है.

Saturday, March 13, 2010

तिनका-तिनका

तिनका तिनका करके मैंने थोड़े अरमान जुटाए थे ,
आहिस्ता आहिस्ता पहुचुँगा मैं ,
ऐसी उम्मीदों के साए थे ,
अब हर तिनका वो जिंदगी की आग में जलता है, 
बूँद बूँद मेरी आँखों से हर लम्हा कुछ रिसता है.