Thursday, October 28, 2010
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी हमेशा तंग रास्तों से होकर ही नहीं गुज़रती, कई फासले ये हरे भरे मैदानों के बीच से भी तय करती है. कुछ पल अगर चिलचिलाती धूप में जलना पड़ता है तो अगले पल बारिश कि नरम बूँदें भी मिलती हैं. ज़िन्दगी के सफ़र कि इस कशिश ने ही तो हमे बाँध रखा है. रोज़मर्रा कि दौड़-धूप, खिचखिच के बीच ख़ुशी का एक हल्का नरम झोका भी माथे कि लकीरों को एक भीनी सी मुस्कान में बदल देता है. इस भीनी सी मुस्कराहट के लिए हमें खासी मशक्कत भी नहीं करनी होती, बस कुछ आसपास देखना होता है. मेजों कि दराजों में, पुरानी कमीज़ कि जेब में, फाइलों के ढेर में या ऐसी ही किन्हीं जगहों में जिन्हें हमनें बेकार समझ कोने में फेंक रखा है. इनके अलावा खुशियों के ये झोके सुबह कि झीनी सी सिहरन ओढ़े हवा के संग, भोर के स्लेटी आसमान में फूटती किरण के संग, रात कि स्याही में चमकते चाँद के संग भी आतें हैं. प्यार भरी माँ कि वो एक नज़र, आशीर्वाद के लिए उठा पिता का हाथ, भाई-बहिन का दुलार और दोस्तों का मनुहार हमारे मुरझाये चेहरे पे जान फूंक जाते हैं. ज़िन्दगी कि इतनी सलाहितों के बाद भी गर हम उसे दोष देते हैं तो इसमें बेचारी ज़िन्दगी का तो कोई कुसूर नहीं है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment