अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Saturday, March 13, 2010
तिनका-तिनका
तिनका तिनका करके मैंने थोड़े अरमान जुटाए थे ,
आहिस्ता आहिस्ता पहुचुँगा मैं ,
ऐसी उम्मीदों के साए थे ,
अब हर तिनका वो जिंदगी की आग में जलता है,
बूँद बूँद मेरी आँखों से हर लम्हा कुछ रिसता है.
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