Wednesday, March 24, 2010

घर

जिन्हें ढूँदती हैं नज़रें ये वो मंज़र नहीं है,

ना हमसफ़र ना हमराह कोई ये वो राह-ए-सफ़र नहीं है,

मैंने तो ख्वाब देखा था गुलिस्ताँ में आशियाँ का,

हर तरफ बिखरी हैं यहाँ लाशें ये वो घर नहीं है.

1 comment:

Lazy Flying Saucer said...

really nic one..randomnly landed on your post....n ya welcum to my blog....