अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Wednesday, March 31, 2010
आरज़ू
चमकते ख़्वाबों की रोशनी से ,
अरमानों के घर सजायेंगे,
और कुछ ना हो सका अगर,
एक दूजे का साथ निभाएंगे,
मुमकिन है ये
आरज़ू
मेरी,
ज़िन्दगी मुझे ये तो बता.
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