अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Thursday, April 1, 2010
किस्सा
ज़िन्दगी को जब देखा करीब से,
तो ये एहसास हुआ,
हँसना रोना गिरना संभलना,
यही तो ज़िन्दगी है,
फिर भी डरते हैं हम ,
जाने किससे या शायद खुद से ,
कहीं कुछ गलत ना हो जाए,
कुछ टूट ना जाए ,
कुछ छूट ना जाए.
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