अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Saturday, May 29, 2010
पनाह
ठहरे हुए लफ़्ज़ों को सोचता हूँ,
तेरा पता दे दूँ,
कोने में सुलगती यादों को,
थोड़ी हवा दे दूँ,
मिल जायेंगी तेरी सांसें,
मेरी साँसों में,
आ तुझे अपनी बाहों में
पनाह
दे दूँ.
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