अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Thursday, May 20, 2010
ज़िन्दगी
मुट्ठी में अरमानों कि ठंडी राख,
साँसों कि उलझी सी साख,
मिल जायेगी धडकनों को आवाज़,
थोड़ी सी
ज़िन्दगी
दे दे.
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