खुद को इंसान कहता है और शैतान से बदतर है,
हर लफ्ज़ उसका ज़हर में डूबा हुआ नश्तर है.
उसे रहा इश्क किसी भी बात से नहीं है,
बस इश्क के नाम पे वो लूटता अक्सर है,
कोई भी तारीख हो यही हुनर जानता है,
बस्तियां उजाड़ के ज़मीन को करता बंजर है.
तरक्की मान के जिसपे गुरुर कर रहा है,
वो देख नहीं सकता कयामत की डगर है.
ये कह के वो खुदा का सीना चाक कर रहा है,
जो गिर रहा है तुझ पे वो खुदा का कहर है.
प्रशांत
हर लफ्ज़ उसका ज़हर में डूबा हुआ नश्तर है.
उसे रहा इश्क किसी भी बात से नहीं है,
बस इश्क के नाम पे वो लूटता अक्सर है,
कोई भी तारीख हो यही हुनर जानता है,
बस्तियां उजाड़ के ज़मीन को करता बंजर है.
तरक्की मान के जिसपे गुरुर कर रहा है,
वो देख नहीं सकता कयामत की डगर है.
ये कह के वो खुदा का सीना चाक कर रहा है,
जो गिर रहा है तुझ पे वो खुदा का कहर है.
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