उसकी तकलीफों का एक ही लिबास होता है,
वो चुप हो जाता है जब भी उदास होता है.
सर सब्ज़ पेड़ सारे पत्तों को दफ्न करने लगते हैं,
खिज़ा का मौसम जब पास होता है.
कौन आसानी से खींच लेता है ज़मीं औरों की,
ये हुनर ही इस जहां में ख़ास होता है.
हर चौखट हर दीवार पे जिंदा लाशें टंगी हैं,
ख़ुदा मर गया है ये एहसास होता है.
प्रशांत
वो चुप हो जाता है जब भी उदास होता है.
सर सब्ज़ पेड़ सारे पत्तों को दफ्न करने लगते हैं,
खिज़ा का मौसम जब पास होता है.
कौन आसानी से खींच लेता है ज़मीं औरों की,
ये हुनर ही इस जहां में ख़ास होता है.
हर चौखट हर दीवार पे जिंदा लाशें टंगी हैं,
ख़ुदा मर गया है ये एहसास होता है.
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