उसने कभी जो मुड़ के आवाज़ लगायी होती,
हम उम्मीदों के असीर थे हमारी रिहाई होती.
बहुत सुना है ज़माने से कि ख़ुदा होता है,
उसे देख सके आँखों में ऐसी बीनाई होती .
कहने को उसकी आँखों में इश्क का समंदर है,
हम डूब जाते काश इतनी तो गहराई होती.
अधजले से कुछ ख्वाब रह गए इन आँखों में,
राख हो पाते इतनी तो उम्र पायी होती.
हैं ढेरों खुशियाँ और गम हर फ़साने में यहाँ,
कभी जो तूने कोई सादी सी कहानी सुनाई होती.
प्रशांत
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