Monday, January 19, 2015

मनहूस

एक एक फंदे गिन कर पलकों पर जो थे बुने गए,
कुछ ख्वाब कल रात वहीँ दीवारों में चुने गए.

बरसों जिनकी आवाजों पर ख़लाओं की पाबंदी थी,
वो सियाह सन्नाटे फिर कई बज्मों में सुने गए.

रात की रौशनी में उनकी गिरहें साफ़ दिखती हैं,
जो मनहूस रिश्ते दिन के अंधेरों में थे बुने गए.

तुझे है उम्मीद कि वो तेरी हर बात समझ लेंगे,
तारीख को देख यहाँ पैगम्बर भी नहीं सुने गए.


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