विरह की गोद में कोई सिर रख कर रोता है,
दर्द मिलता है जब टूट कर इश्क होता है.
दूर तक निगाहों में नफरत और रंजिश के खेत हैं,
बुज़ुर्ग कहते थे काटेगा वही जो तू बोता है.
कितने ही दर-ओ-बाम उजाड़े हैं आजादी के लिए,
लेकर आजादी अपनी अब वो क़फ़स को रोता है.
एक उम्र से ख्वाहिशों के सफ़र में था,
थक गया है देखो कैसे चैन से सोता है.
प्रशांत
दर्द मिलता है जब टूट कर इश्क होता है.
दूर तक निगाहों में नफरत और रंजिश के खेत हैं,
बुज़ुर्ग कहते थे काटेगा वही जो तू बोता है.
कितने ही दर-ओ-बाम उजाड़े हैं आजादी के लिए,
लेकर आजादी अपनी अब वो क़फ़स को रोता है.
एक उम्र से ख्वाहिशों के सफ़र में था,
थक गया है देखो कैसे चैन से सोता है.
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