Friday, January 16, 2015

मुन्तशिर

दिल की दिल में रखने से रिश्ते तो बच जाते हैं,
ये अन्दर के ज़लज़ले मगर हम को खा जाते हैं.

यूँ तो सभी को ज़माने में रौशनी से इश्क है,
फिर भी यूँ ही कभी अँधेरे नज़रों को भा जाते हैं.

बराए खौफ़ झुकते हैं सर उसकी सभाओं में,
सुना है फ़रिश्ते रहमत में घर जला जाते हैं.

अपने आगे फैली हुई नन्ही हथेलियों को देख,
कभी सोचा उनकी लकीरों से खुदा कहाँ जाते हैं.

लोग इश्क में भी चोटों का हिसाब रखते हैं,
हम ऐसे मुन्तशिर जज़्बात से घबरा जाते हैं.

लोगों ने नाम कमाए हैं अपने अंदाज़-ए-सुखन से,
हम तो बस लिखते हैं की सुकून पा जाते हैं. 

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