चलो आज फ़रिश्तों से ख़ुदाई मांगी जाए,
रिसते हुए ज़ख्मों की दवाई मांगी जाए.
उसकी एक झलक देखी और शरीर हो गए,
ये कैसी मोहब्बत इससे रिहाई मांगी जाए.
उसकी शान में एक ज़माने से लिखते रहे हैं हम,
थोड़ा सा सच लिख सकें ऐसी रौशनाई मांगी जाए.
महफ़िलों को हमारी ग़ज़लों ने तन्हा ही किया है,
दानिश-वर शायरों से थोड़ी सी आराई मांगी जाए.
बड़ों के हाथ में देखो दुनिया का क्या हाल हुआ है,
आओ बच्चों से थोड़ी सी रानाई मांगी जाए.
रिसते हुए ज़ख्मों की दवाई मांगी जाए.
उसकी एक झलक देखी और शरीर हो गए,
ये कैसी मोहब्बत इससे रिहाई मांगी जाए.
उसकी शान में एक ज़माने से लिखते रहे हैं हम,
थोड़ा सा सच लिख सकें ऐसी रौशनाई मांगी जाए.
महफ़िलों को हमारी ग़ज़लों ने तन्हा ही किया है,
दानिश-वर शायरों से थोड़ी सी आराई मांगी जाए.
बड़ों के हाथ में देखो दुनिया का क्या हाल हुआ है,
आओ बच्चों से थोड़ी सी रानाई मांगी जाए.