Sunday, March 21, 2010
चिराग तले अँधेरा
एक कहावत जो माँ से सुनी थी आज उसके अस्तित्व को महसूस किया है. इससे चिराग की बदकिस्मती कहिये या उसकी नाकामी. वो चिराग जो अपनी सीमित शक्ति के बावजूद दूसरों को रास्ता दिखता है अपने अन्दर एक घना अँधेरा छुपाये होता है. ऐसा ही कुछ मै अपने आसपास देख सकता हूँ. एक विभाग जो की अपने मूल रूप में सम्प्रेषण का घर है, वहां स्वयं सम्प्रेषण नामक वस्तु का आभाव है. कोई किसीसे कुछ बोल नहीं सकता क्योकि विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यहाँ लागू नहीं होती. आप नहीं जान सकते की ऐसा क्यूँ है. हाँ अगर आपने धरा के विपरीत जाने की कोशिश की तो मूह की खानी पड़ सकती है. सारा सम्प्रेषण एक्मार्गीय है. खैर जैसे इस दुनिया की यानि की सम्प्रेषण की दुनिया की बाकि समस्याएँ दूर हुई है इस समस्या का भी कोई न कोई हल तो अवश्य होगा. जरुरत है उस चिराग को चिराग दिखाने की.
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1 comment:
choITNA SOCH KAISE LETE HO YAAR???
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