उसने कुछ देर इधर-उधर देखा और फिर धीरे से सब की नज़र बचा कर एक लड्डू उठा लिया. अब भला उससे कैसे इतना देर इंतज़ार होता कि पहले भगवान जी खा लें फिर वो खाये. और ऐसा भी नहीं है कि उसने संयम नहीं रखा. माँ के कहने पर पिछले दो घंटे से खुद को संभाले बैठा है. कभी कोई बोलता राहुल ये ले आ, तो कोई कहता कि राहुल ये पहुंचा दे. बेचारा बच्चा एक अदद लड्डू के लिए सब की सुन रहा था. सब खाली अपने में मगन थे, किसी से ये नहीं हुआ कि एक लड्डू उसे दे ही दें. कहाँ तो कहते फिरेंगे की बच्चे भगवान का रूप होते हैं. जब भगवान के लिए बच्चे को तरसाते हैं तब याद नहीं आता. खैर राह देखते-देखते जब राहुल से रहा नहीं गया तो उसने मन ही मन भगवान जी को सॉरी कहा और पहले खुद को भोग लगा लिया. भगवान जी तो शायद उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा रहे थे पर उसकी बुआ से ये बात सहन नहीं हुई. आखिर बच्चों को सही-गलत का पता होना चाहिए की नहीं. बस ज़िन्दगी का यही फ़लसफ़ा सीखाने के उद्देश्य से बुआ ने उस बेचारे के हाथ से लड्डू छीन लिया. इतना ही नहीं उसे सब के सामने दो-चार सुना भी दी. राहुल सुखा सा मुंह ले कर वहां से चला गया. बुआ जी ने वो लड्डू वापस थाल में रखा और उसे उठा कर पीछे कमरे में रखने चली गयी. कमरे में थाल रख कर बुआ अभी पलती ही थीं कि उनकी नज़र अपनी भाभी की साड़ी के नीचे से झांकते 500 रुपये के नोट पर पड़ी. बुआ जी ने कुछ देर इधर-उधर देखा और...
Tuesday, May 20, 2014
Monday, May 19, 2014
काफ़िर
मुश्किलों में देख कर कश्ती अपनी वो रोने लगे,
काफ़िर भी ख़ुदा के नाम से आस्तीनें भिगोने लगे.
इन आतिश-फ़िशानी राहों का जब इल्म था तुम्हें,
फ़िर क्यों दामन-ए-हयात में यूँ सपने पिरोने लगे.
कुव्वते बर्दाश्त से बढ़ने लगे जब बोझ ज़िन्दगी के,
लोग बाखुशी खुद को शराब में डुबोने लगे.
तेरी सोहबत का जब से शक है ज़माने को,
हम भी इल्मफरोशों में शामिल होने लगे.
कुछ रोज़ की ही थी वो रोशनी यार की,
हम फिर उन्हीं बेआवाज़ अंधेरों में खोने लगे.
काफ़िर भी ख़ुदा के नाम से आस्तीनें भिगोने लगे.
इन आतिश-फ़िशानी राहों का जब इल्म था तुम्हें,
फ़िर क्यों दामन-ए-हयात में यूँ सपने पिरोने लगे.
कुव्वते बर्दाश्त से बढ़ने लगे जब बोझ ज़िन्दगी के,
लोग बाखुशी खुद को शराब में डुबोने लगे.
तेरी सोहबत का जब से शक है ज़माने को,
हम भी इल्मफरोशों में शामिल होने लगे.
कुछ रोज़ की ही थी वो रोशनी यार की,
हम फिर उन्हीं बेआवाज़ अंधेरों में खोने लगे.
Sunday, May 18, 2014
स्याही
कुछ लिखने की चाहत और कुछ अर्थपूर्ण लिखने में बड़ा फ़र्क है. कागज़-कलम ले कर अगर बैठ भी जाओ तो शब्दों की स्याही नहीं मिलती. और अगर थोड़ी मशक्कत करके शब्दकोष से थोड़ी सी स्याही ले भी ली तो भावनाओं का खुरदुरापन कागज़ पर उतरने लगता है. फिर जो कुछ थोड़ा-बहुत पढ़ने लायक होता है वह अकसर खुद को ही समझ नहीं आता. अब आप कहेंगे जनाब यह तो हर लिखने वाले को लगता है कि उसका लिखा दमदार नहीं है. आप अपनी लेखनी लोगों के सामने रखिये और उन्हें तौलने दीजिये. कई बार एक ही चीज़ लगातार देखते रहने से आँखें उनकी बारीकी पकड़ नहीं पातीं. अब बया को थोड़े ही पता होता है कि जो घोंसला उसने बुना है वह क्या लाजवाब है, यह तो हम और आप देख के उसकी खूबसूरती से गदगद हो जाते हैं. लेकिन आप ही बताइये कि परीक्षार्थी जब परीक्षा देकर बाहर आता है तो उसे भली-भांति पता होता है ना कि कितने नंबर पाने वाला है. और जहां तक अपना सवाल है, आज तक हमारा अनुमान गलत नहीं हुआ. खैर साल भर पहले भी एक बार ऐसे ही लिखने के लिए कमर कसी थी पर कुछ नतीजा निकला नहीं था. इस बार फिर ताकत बटोरी है. देखते हैं शब्दों की स्याही कौन सा चित्र उकेरती है...
Wednesday, January 2, 2013
साव देबे न करें कहें पुरे तौलिया!!
अपनी और अपने देश की हालत आजकल कुछ
ऐसी ही है। हमें ऊपर वाले ने दर्शन देने से इनकार कर दिया और देश को सरकार
वालों ने। बड़ी उम्मीद ले के हम पहली तारिख को हाजरी देने गए थे, पर वहां
जाके पता चला की आजकल ऊपर वाले को भी सिक्योरिटी की चिंता सत रही है। हमारे
कंधे पे काला बैग देखा और सीधा कतार से बाहर। उनके रखवालों का कहना था की
200 गज के बाहर बैग रख आओ। हमारे इश्वर को चोट न पहुंचे बाकियों की हमें
परवाह नहीं। हाँ ये डर उसे सिर्फ पुरुष बिरादरी से ही है। खैर इसमें उसका
भी कोई दोष नहीं है, आखिर आज तक सारे युद्ध और हमले हमने ही तो किये हैं।
हमने ही तो इंसानियत के चेहरे की छील के बदसूरत कर दिया है। वो तो अब खुद
को आईने में देख कर भी डर जाता है। हाँ हाँ जानता हूँ की कारण हमेशा कुछ
और थे पर भैया फेस वैल्यू तो अपनी खराब हो गयी न। अब करते रहो अभिमान अपने
पुरुष होने पे। चौखटा तो हुई गवा करिया।
अब बात अपने इस महान परम्परावादी, सिद्धांतवादी और निति नियम पालक देश की। चिंता का विषय ये है की ये सारी ही गुणवत्ता वाली वस्तुएं ही लुप्त होती जा रहीं हैं। जनता है की अपना गला फाड़ फाड़ के जिंदा करने की कोशिश में है और सरकार जानती है की अगर वो जिंदा हो गयी तो लुटिया डूब जायेगी। जनता जनार्दन सरकार को महिमामंडित कर रही है, वहीँ सरकार का कहना है की हम तो जनता का ही एक छोटा सा हिस्सा हैं। जो जनता करती है वही हम करते हैं। आम इंसान (आदमी लिखने में अब शर्मिंदगी होती है) झोली फैलाए बैठा और सरकार मंच पे चढ़ के मुजरा करने के मूड में है।
अब ऐसे में किसे क्या मिलेगा ये तो वो बिल में दुबका इश्वर ही जाने। जब उसकी ही हालत पतली है तो फिर हम तो वैसे भी 200 गज के बाहर हैं।
अब बात अपने इस महान परम्परावादी, सिद्धांतवादी और निति नियम पालक देश की। चिंता का विषय ये है की ये सारी ही गुणवत्ता वाली वस्तुएं ही लुप्त होती जा रहीं हैं। जनता है की अपना गला फाड़ फाड़ के जिंदा करने की कोशिश में है और सरकार जानती है की अगर वो जिंदा हो गयी तो लुटिया डूब जायेगी। जनता जनार्दन सरकार को महिमामंडित कर रही है, वहीँ सरकार का कहना है की हम तो जनता का ही एक छोटा सा हिस्सा हैं। जो जनता करती है वही हम करते हैं। आम इंसान (आदमी लिखने में अब शर्मिंदगी होती है) झोली फैलाए बैठा और सरकार मंच पे चढ़ के मुजरा करने के मूड में है।
अब ऐसे में किसे क्या मिलेगा ये तो वो बिल में दुबका इश्वर ही जाने। जब उसकी ही हालत पतली है तो फिर हम तो वैसे भी 200 गज के बाहर हैं।
Sunday, December 23, 2012
शाइस्ता
अभी तो ख्वाब मेरी आँखों के सम्भले भी नहीं थे,
यूँ झकझोर के मुझको क्यों उठा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो जी लेने दे।।।
अरसे बाद शाइस्ता प्याले ने लबों को छुआ था,
क्यों बेरहमी से उस प्याले को गिरा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो पी लेने दे।
मुद्दतों के बाद तेरी बेरुखी में सुकून आया था ,
तून नज़ाकत से मुझे फिर डरा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो सांस लेने दे।
यूँ झकझोर के मुझको क्यों उठा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो जी लेने दे।।।
अरसे बाद शाइस्ता प्याले ने लबों को छुआ था,
क्यों बेरहमी से उस प्याले को गिरा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो पी लेने दे।
मुद्दतों के बाद तेरी बेरुखी में सुकून आया था ,
तून नज़ाकत से मुझे फिर डरा दिया,
ज़िन्दगी कभी तो सांस लेने दे।
Wednesday, December 19, 2012
AGONY
Why
the hell everyone is asking about trials and setting up courts, are they trying
to prove that "SHE" has been raped by carefully debating and mulling
over the subject.
Advocate 1: My lord "SHE" is accusing my counsel of raping her. what
proof does she has of that? It could very well have been a consensual
intercourse. Because from where I am standing, I cannot see any signs of rape.
Advocate 2: I object your honor, defense council is making false assumptions. I
have enough evidence supporting the fact that the intercourse was in fact a
rape not a consensual sex. Madam could you please show us the scratches and
bruises on your conscious, sub-conscious and unconscious as well as your
genitalia.
Spare 'HER' the agony my fellow empathic citizens, just catch the bastards and
incarcerate them. Don't rape 'HER' over and over and over again with your
lacerated words, just to establish the fact that 'SHE' actually got raped.
Advocate 1: My lord "SHE" is accusing my counsel of raping her. what proof does she has of that? It could very well have been a consensual intercourse. Because from where I am standing, I cannot see any signs of rape.
Advocate 2: I object your honor, defense council is making false assumptions. I have enough evidence supporting the fact that the intercourse was in fact a rape not a consensual sex. Madam could you please show us the scratches and bruises on your conscious, sub-conscious and unconscious as well as your genitalia.
Spare 'HER' the agony my fellow empathic citizens, just catch the bastards and incarcerate them. Don't rape 'HER' over and over and over again with your lacerated words, just to establish the fact that 'SHE' actually got raped.
Tuesday, December 18, 2012
जुम्बिश
मुझसे मेरी राहों की कशिश छीन ली,
रूहाफ्ज़ा लफ़्ज़ों की बंदिश छीन ली,
कहूँ भी तो कैसे की तू मेरा क्या है,
मुझसे मेरे लबों की जुम्बिश छीन ली।।।।
Monday, December 10, 2012
चेहरा
बहुत कोशिश की पहचानने की उसे,
पर आईने में वो चेहरा मेरा नहीं था,
नश्तर सी एक हँसी को संभाले,
बेरुखा सा वो चेहरा मेरा नहीं था....
पर आईने में वो चेहरा मेरा नहीं था,
नश्तर सी एक हँसी को संभाले,
बेरुखा सा वो चेहरा मेरा नहीं था....
Tuesday, December 4, 2012
सन्नाटा
धोती खोल के चिल्लाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है,
पकड़ो पकड़ो उसकी बांह धरो,
उसमे आकंठ अंगार भरो,
बोल मनु क्यों सकुचाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
राम के कहने पर बैदेही,
जब अग्नि में समायी थी,
बजरंग लक्ष्मण सब वीरों की,
ग्रीवा ही जैसे मुरझाई थी,
एक शब्द भी विरोध का ,
न कोई मुख बोला था,
मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को,
कहाँ किसी ने टोला था,
अश्रुपूरित नयनो में सिया के,
बस यही दुहाई थी,
नारी को ही जो परखे पग पग,
कैसा रे तू विधाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
कुत्सित है विकृत एक विकार है,
मनु पुत्रों तुम्हारे पौरुष को धिक्कार है,
निर्मम हत्या की है तुमने,
अंधियारे में छिपकर,
अपने ही पैरों को काटे,
ऐसे हो बुद्धिधर ,
हो शक्तिशाली संपूर्ण स्वयं,
ये मिथ्या संवाद प्रवर,
कायर हो तुम,वो तुमको भरमाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
ये तो पागल सन्नाटा है,
पकड़ो पकड़ो उसकी बांह धरो,
उसमे आकंठ अंगार भरो,
बोल मनु क्यों सकुचाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
राम के कहने पर बैदेही,
जब अग्नि में समायी थी,
बजरंग लक्ष्मण सब वीरों की,
ग्रीवा ही जैसे मुरझाई थी,
एक शब्द भी विरोध का ,
न कोई मुख बोला था,
मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को,
कहाँ किसी ने टोला था,
अश्रुपूरित नयनो में सिया के,
बस यही दुहाई थी,
नारी को ही जो परखे पग पग,
कैसा रे तू विधाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
कुत्सित है विकृत एक विकार है,
मनु पुत्रों तुम्हारे पौरुष को धिक्कार है,
निर्मम हत्या की है तुमने,
अंधियारे में छिपकर,
अपने ही पैरों को काटे,
ऐसे हो बुद्धिधर ,
हो शक्तिशाली संपूर्ण स्वयं,
ये मिथ्या संवाद प्रवर,
कायर हो तुम,वो तुमको भरमाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।
Monday, December 3, 2012
टुकड़ा
कभी तो उछल के वो चाँद काट ले,
बड़े बड़ों की नाक पे वो दांत कांट ले]
रहे सौ परतों में वो छुप के ऐसे]
हो गोया एक टुकड़ा रात का।
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