Tuesday, May 20, 2014

लड्डू

उसने कुछ देर इधर-उधर देखा और फिर धीरे से सब की नज़र बचा कर एक लड्डू उठा लिया. अब भला उससे कैसे इतना देर इंतज़ार होता कि पहले भगवान जी खा लें फिर वो खाये. और ऐसा भी नहीं है कि उसने संयम नहीं रखा. माँ के कहने पर पिछले दो घंटे से खुद को संभाले बैठा है. कभी कोई बोलता राहुल ये ले आ, तो कोई कहता कि राहुल ये पहुंचा दे. बेचारा बच्चा एक अदद लड्डू के लिए सब की सुन रहा था. सब खाली अपने में मगन थे, किसी से ये नहीं हुआ कि एक लड्डू उसे दे ही दें. कहाँ तो कहते फिरेंगे की बच्चे भगवान का रूप होते हैं. जब भगवान के लिए बच्चे को तरसाते हैं तब याद नहीं आता. खैर राह देखते-देखते जब राहुल से रहा नहीं गया तो उसने मन ही मन भगवान जी को सॉरी कहा और पहले खुद को भोग लगा लिया. भगवान जी तो शायद उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा रहे थे पर उसकी बुआ से ये बात सहन नहीं हुई. आखिर बच्चों को सही-गलत का पता होना चाहिए की नहीं. बस ज़िन्दगी का यही फ़लसफ़ा सीखाने के उद्देश्य से बुआ ने उस बेचारे के हाथ से लड्डू छीन लिया. इतना ही नहीं उसे सब के सामने दो-चार सुना भी दी. राहुल सुखा सा मुंह ले कर वहां से चला गया. बुआ जी ने वो लड्डू वापस थाल में रखा और उसे उठा कर पीछे कमरे में रखने चली गयी. कमरे में थाल रख कर बुआ अभी पलती ही थीं कि उनकी नज़र अपनी भाभी की साड़ी के नीचे से झांकते 500 रुपये के नोट पर पड़ी. बुआ जी ने कुछ देर इधर-उधर देखा और...

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