आज-कल ज़िन्दगी को थोड़ा कम पीते हैं,
है प्यास बड़ी और प्यासे जीते हैं.
रफ़्तार में कहाँ कुछ नज़र आता है कभी,
जो दिखते हैं मंज़र धुंधले दिखते हैं.
लोगों से सुनते थे कभी तश्नगी-ए-मंजिल का हाल,
हमें भी हर कदम अब सराब ही मिलते हैं.
वो मिल जाएँ कभी तो हमारा हाल कह देना,
फ़रिश्ते कहाँ रोज़ हमारी गली से निकलते हैं.
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