Wednesday, December 17, 2014

उधार

मैं आज भी रुका हूँ वहीँ इंतज़ार सा,
तेरे स्पंदन से स्पंदित तार सा,
कश्ती पे टंगी पतवार सा,
मैं आज भी रुका हूँ वहीँ इंतज़ार सा.

टहनियां सब हरे पत्तों से भर गयीं,
ज़मीं तक उतरती धूप शीतल कर गयीं,
रह गया हवाओं में फिर भी खार सा,
मैं आज भी रुका हूँ वहीँ इंतज़ार सा.

उम्रों के टेढ़े रास्ते अब सीधा सा सफ़र है,
हर दीवार से उधड़ता वक़्त का असर है,
रूह पे भारी है अब भी कुछ उधार सा,
मैं आज भी रुका हूँ वहीँ इंतज़ार सा.


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