Tuesday, December 4, 2012

सन्नाटा

धोती खोल के चिल्लाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है,
पकड़ो पकड़ो उसकी बांह धरो,
उसमे आकंठ अंगार भरो,
बोल मनु क्यों सकुचाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।

राम के कहने पर बैदेही,
जब अग्नि में समायी थी,
बजरंग लक्ष्मण सब वीरों की,
ग्रीवा ही जैसे मुरझाई थी,
एक शब्द भी विरोध का ,
न कोई मुख बोला था,
मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को,
कहाँ किसी ने टोला था,
अश्रुपूरित नयनो में सिया के,
बस यही दुहाई थी,
नारी को ही जो परखे पग पग,
कैसा रे तू विधाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है।

कुत्सित है विकृत एक विकार है,
मनु पुत्रों तुम्हारे पौरुष को धिक्कार है,
निर्मम हत्या की है तुमने,
अंधियारे में छिपकर,
अपने ही पैरों को काटे,
ऐसे हो बुद्धिधर ,
हो शक्तिशाली संपूर्ण स्वयं,
ये मिथ्या संवाद प्रवर,
कायर हो तुम,वो तुमको भरमाता है,
ये तो पागल सन्नाटा है। 

9 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन


सादर

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...

बहुत बढ़िया रचना...
अनु

Prashant said...

yashwant ji aur anu ji shukriya aapke protsaahan ke liye...kripya mere blog ka link apne blogs pe daalne ka kasht karein...isse mujhe jyaada logo tak pahuchne mein suvidhaa hogi...

Yashwant R. B. Mathur said...


कल 07/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Prashant said...

yashwant ji shukriya...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत से प्रश्न उठता सन्नाटा ...

Anonymous said...

सन्नाटे के भावों को बखूबी बयाँ करती रचना !!!

Rohitas Ghorela said...

वाह आपकी ये पोस्ट बेहद लाजवाब लगी ...एक उम्दा विचारों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ...


आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..अगर आपको भी अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़े।

आभार!!

Unknown said...

lajwab