Tuesday, December 18, 2012

जुम्बिश

मुझसे मेरी राहों की कशिश छीन ली,
रूहाफ्ज़ा लफ़्ज़ों की बंदिश छीन ली,
कहूँ भी तो कैसे की तू मेरा क्या है,
मुझसे मेरे लबों की जुम्बिश छीन ली।।।।

2 comments:

Rohitas Ghorela said...

waah Bhai sahb kya kahne ... :)

you are welcome to my recent poem:: नम मौसम, भीगी जमीं ..

Unknown said...

वाह .....बहुत खूब..