अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Monday, December 3, 2012
टुकड़ा
कभी तो उछल के वो चाँद काट ले,
बड़े बड़ों की नाक पे वो दांत कांट ले]
रहे सौ परतों में वो छुप के ऐसे]
हो गोया एक टुकड़ा रात का।
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