धुआँ ही धुआँ सबकी आँखों में भर जाएगा,
और फिर अश्क़ों में घुल के उतर जाएगा.
जिन्हें रास्तों का इल्म था वो भटक गए,
जो भटका हुआ है वो गुज़र जाएगा.
आज हर एक खाने में कई मोहरें हैं,
कल हर एक खाना सिकुड़ जाएगा.
जो सरे बाज़ार सच का ढोल पीटता है,
जब उससे सच पूछोगे तो मुकर जाएगा.
और फिर अश्क़ों में घुल के उतर जाएगा.
जिन्हें रास्तों का इल्म था वो भटक गए,
जो भटका हुआ है वो गुज़र जाएगा.
आज हर एक खाने में कई मोहरें हैं,
कल हर एक खाना सिकुड़ जाएगा.
जो सरे बाज़ार सच का ढोल पीटता है,
जब उससे सच पूछोगे तो मुकर जाएगा.
No comments:
Post a Comment