Wednesday, January 9, 2019

तंज

धुआँ ही धुआँ सबकी आँखों में भर जाएगा,
और फिर अश्क़ों में घुल के उतर जाएगा.

जिन्हें रास्तों का इल्म था वो भटक गए,
जो भटका हुआ है वो गुज़र जाएगा.

आज हर एक खाने में कई मोहरें हैं,
कल हर एक खाना सिकुड़ जाएगा.

जो सरे बाज़ार सच का ढोल पीटता है,
जब उससे सच पूछोगे तो मुकर जाएगा.





चाक

तमाम कोशिशों के बाद भी ना गढ़ा गया,
कैसा कुम्हार है, चाक पे रेतीली मिट्टी चढ़ा गया.
तुम तो अजनबी हो फिर भी तुम से अड़ जाता है,
हमसे तो इश्क था, फिर भी ना उससे अड़ा गया.
ये जो तुम आज मेरे चेहरे पे पढ़ रहे हो,
ये तो सारी उम्र किसी से भी ना पढ़ा गया.
जो बहके हुए हैं उन्हें रास्तों का इल्म ना दो,
जिन्हें मालूम थे रास्ते उनसे ही कहां बढ़ा गया.
अब मिले गरमाहट तो शायद कफ़न में मिले,
ये झीना सा ज़िन्दगी का शाल हमसे ना ओढ़ा गया.

Saturday, June 10, 2017

13 Reasons Why You Might Be A Bully…



Since it was launched, on 31st March 2017, Netflix’s original series created a lot of buzz around the globe. More often for the bad influence than the good ones. There have been countless reports in the media of how someone tried to imitate what was shown in the series. Various orders/disclaimers were issued to warn parents not to watch this with their children. Schools were issuing notices to their students asking them to watch it as any other fiction. So much was the backlash on the series that Netflix had to release a statement, “While many of our members find the show to be a valuable driver for starting an important conversation with their families, we have also heard concern from those who feel the series should carry additional advisories. Moving forward, we will add an additional viewer warning card before the first episode as an extra precaution for those about to start the series.”

Katherine Langford as Hannah Baker in 13 Reasons Why...
Now, take a step back, to get the entire picture of what is happening here. As a society, we have evolved over years to ward of the ‘evil spirits’ and to avert our eyes when faced with a real problem. The series, based on a book of the same name by Jay Usher, paints a vivid picture of the world that we live in. A world which accepted that ‘Bullying’ someone is detrimental, but it continued with it anyways. Now, there are several laws in various countries against bullying. However, it is understood that like any other important matter, laws were made but never followed. And slowly we decided to not talk about it when it happens. 

Before we go any further, let us quickly understand what bullying is. According to Oxford dictionary, ‘bullying is an act by a person who uses strength or influence to harm or intimidate those who are weaker.’ I know after reading this definition, you must be trying to wrap your head around the fact that you have been surrounded by bullies all your life. Someone who tried to pull you down. Someone who may have called you names. Someone who spread a rumor
about you. Isn’t it?
It is natural. I did the same thing. What came next was even more horrifying. It was when my gaze fell upon me after looking at everybody else. Every single time, when I bullied someone, came rushing back. Now, you will say that you were never that person. That you never bullied anybody. Well look closely. All those times when you thought, you were being friendly or hilarious or you trying to fit in, you became a part of that dark race of bullies. 

If it is difficult even now, probably these 13 points will help you remember better:
  1. When you called your friends not by their real names but by a word which was pasted on them  by someone.
  2. When you lend ears to a gossip about any of your colleagues or friends.
  3. When you called out your brothers/sisters not by their names/nicknames, but some cuss words, even during a fight.
  4. When you looked down upon someone because they were wearing something you didn’t find very fashionable or appealing.
  5. When you tried to browbeat someone in to doing your will.
  6. When you laughed at somebody’s gait.
  7. When you made fun of someone’s accent.
  8. When you cornered someone based on the region they belonged to or their caste.
  9. When you pushed a junior too much at your workplace.
  10. When you asked your child to eat or else some imaginary horrible person will come to snatch their food.
  11. When you stopped your spouse/GF/BF from talking to someone because you weren’t feeling safe.
  12. When you were honking unnecessarily on the road because you felt like it.
  13. When you shouted at someone crossing the road because you were in a hurry.
Probably, after reading these points, you’ll think that this is not bullying. It is so common and natural. You are correct. Bullying has become casual and natural. It is part of our life that we keep ignoring as being a jolly thing. To loosen the mould. For you that may be true. Now imagine a person who has low self-confidence and/or is fighting with an emotional setback. Behaviour like this will push him over the edge. Unknowingly you might be pushing someone to commit a horrible act. 

So, next time, when you are amongst a gathering of your friends or colleagues, think twice before you go for that easy joke on someone.

Take care!

Tuesday, April 4, 2017

कफ़न

चलो माना कि वो उम्र भर हमारा होगा,
पर क्या फ़क़त इतने से गुज़ारा होगा.

आओ ढूंढें कहीं हमारे असीम ख़्वाबों में,
किसी गर्द में छुपा हुआ कोई सितारा होगा.

जो भटक रहा हूँ सेहरा में तो मेरी ही खता है,
गुंजी होगी अना कानों में जो उसने पुकारा होगा.

अब की आओ तो अपने साथ एक कफ़न लेते आना,
जो आसमान टूटा तो उसी का सहारा होगा.

जहां पहुँच कर हम एक रोज़ डूब गए थे,
वही उफनता दरिया किसी का किनारा होगा. 


प्रशांत


Friday, November 20, 2015

उलटे पाँव

कहीं तो किसी को ज़रूर खलते होंगे,
कुछ ख्वाब बेबात जब पलकों से फिसलते होंगे.

अपनी आँखों में लेकर अश्क भी आग भी,
नासेह अदावतों के बाज़ार में निकलते होंगे.

कोई कैसे करें उम्मीद मुकम्मल जहान की,
उन बच्चों से जो नफरती दरारों में पलते होंगे.

जिन्हें यकीन हैं की सब ठीक हो जाएगा,
वो भी रोज़ घर के ताले बदलते होंगे.

जो ये बता रहा है कि क़त्ल ही इन्साफ है,
गौर से देखो उस ख़ुदा के पाँव उलटे होंगे.


Friday, January 23, 2015

आराई

चलो आज फ़रिश्तों से ख़ुदाई मांगी जाए,
रिसते हुए ज़ख्मों की दवाई मांगी जाए.

उसकी एक झलक देखी और शरीर हो गए,
ये कैसी मोहब्बत इससे रिहाई मांगी जाए.

उसकी शान में एक ज़माने से लिखते रहे हैं हम,
थोड़ा सा सच लिख सकें ऐसी रौशनाई मांगी जाए.

महफ़िलों को हमारी ग़ज़लों ने तन्हा ही किया है,
दानिश-वर शायरों से थोड़ी सी आराई मांगी जाए.

बड़ों के हाथ में देखो दुनिया का क्या हाल हुआ है,
आओ बच्चों से थोड़ी सी रानाई मांगी जाए.



Thursday, January 22, 2015

खोज

फ़क़त इक कली में हासिल-ए-बहार ढूंढते हैं,
हम शगुफ़्ता चेहरों में इश्क के आसार ढूंढते हैं.

जिसके ज़रिये दो घरों की बातें हो जाती थीं,
कहाँ गया खिड़कियों से बंधा वो तार ढूंढते हैं.

इक अब्र आवारा मिरे सर-ए-बाम क्या दिखा,
लोग मेरे आँगन में खोयी बहार ढूंढते हैं.

किसने कब क्यों कैसे गिरायी वो दीवार ख़ुदा जाने,
क़ाज़ी-ए-फ़ासिल मिरे लिबास तले औज़ार ढूंढते हैं.

कहीं से हवाएं मेरे घर की ख़ुशबू ला रहीं हैं,
आओ उस सोंधे से चूल्हे की दयार ढूंढते हैं.

कश्ती है दरिया है और नाखुदा भी साथ है,
उस पार उतरने को अब एक पतवार ढूंढते हैं.

मुद्दतों बाद हमने उसकी कोई तस्वीर देखी थी,
अब घर के गोदाम में वो अखबार ढूंढते हैं.

साज-ओ-सामान के साथ वो घर से चला गया,
शहर-शहर हम फिर से रोज़गार ढूंढते हैं.

इस से पहले की हम ठोकरों से शर हो जाएँ,
पीठ लगाने को कोई दीवार ढूंढते हैं.

अब मिलना है सुकून तो माँ की गोद में मिलेगा,
हम उसको इस जहाँ में बेकार ढूंढते हैं. 

Wednesday, January 21, 2015

चादर

हज़ार चुप रख लो मगर कभी तो सुनानी ही होगी,
जो उम्रों के मरासिम हैं तो कोई कहानी भी होगी.

जो भर रहे हो तो गिन के भरना इसे अज़ाबों से,
क़यामत के रोज़ ये जिस्म की गठरी उठानी भी होगी.

उनकी आँखों के चराग़ फूंकते हो मगर याद रहे,
तुम्हारे घर की रौशनी कभी सयानी भी होगी.

हम अपने रहनुमाओं की रहनुमाई का हुनर देखते हैं,
कहते हैं नए मकान बनाने को बस्ती हटानी भी होगी.

चंद रोज़ को ही मिलती है ये तपिश साँसों की,
जो आज नयी है चादर तो पुरानी भी होगी.

खौफ़ होना अंधेरों का जायज़ है लेकिन सच है,
उजाले देखने को आँखों से पट्टी हटानी भी होगी. 

Monday, January 19, 2015

मनहूस

एक एक फंदे गिन कर पलकों पर जो थे बुने गए,
कुछ ख्वाब कल रात वहीँ दीवारों में चुने गए.

बरसों जिनकी आवाजों पर ख़लाओं की पाबंदी थी,
वो सियाह सन्नाटे फिर कई बज्मों में सुने गए.

रात की रौशनी में उनकी गिरहें साफ़ दिखती हैं,
जो मनहूस रिश्ते दिन के अंधेरों में थे बुने गए.

तुझे है उम्मीद कि वो तेरी हर बात समझ लेंगे,
तारीख को देख यहाँ पैगम्बर भी नहीं सुने गए.


Friday, January 16, 2015

मुन्तशिर

दिल की दिल में रखने से रिश्ते तो बच जाते हैं,
ये अन्दर के ज़लज़ले मगर हम को खा जाते हैं.

यूँ तो सभी को ज़माने में रौशनी से इश्क है,
फिर भी यूँ ही कभी अँधेरे नज़रों को भा जाते हैं.

बराए खौफ़ झुकते हैं सर उसकी सभाओं में,
सुना है फ़रिश्ते रहमत में घर जला जाते हैं.

अपने आगे फैली हुई नन्ही हथेलियों को देख,
कभी सोचा उनकी लकीरों से खुदा कहाँ जाते हैं.

लोग इश्क में भी चोटों का हिसाब रखते हैं,
हम ऐसे मुन्तशिर जज़्बात से घबरा जाते हैं.

लोगों ने नाम कमाए हैं अपने अंदाज़-ए-सुखन से,
हम तो बस लिखते हैं की सुकून पा जाते हैं.