Friday, November 20, 2015

उलटे पाँव

कहीं तो किसी को ज़रूर खलते होंगे,
कुछ ख्वाब बेबात जब पलकों से फिसलते होंगे.

अपनी आँखों में लेकर अश्क भी आग भी,
नासेह अदावतों के बाज़ार में निकलते होंगे.

कोई कैसे करें उम्मीद मुकम्मल जहान की,
उन बच्चों से जो नफरती दरारों में पलते होंगे.

जिन्हें यकीन हैं की सब ठीक हो जाएगा,
वो भी रोज़ घर के ताले बदलते होंगे.

जो ये बता रहा है कि क़त्ल ही इन्साफ है,
गौर से देखो उस ख़ुदा के पाँव उलटे होंगे.


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