एक महीने बचे हैं दुनिया खत्म होने को और किसी को कोई फ़िक्र ही नहीं है। पिछले साल तक तो ऐसे चिल्ला रहे थे की पूछो मत लगता था की किसी ने इनके जागते में में इनकी नाक के बाल तोड़ लिए हों। भाइयों अगर प्रलय के बाद के लिए भी बचाना और छिपाना शुरू कर दिया है तो हमें भी बता दो। हम भी एक दो जोड़ी चप्पू रख ले अंगोछे में। अपनी भी नैया पार हो जाएगी। बेचारे कसाब को भी लटका दिया वर्ना वो भी देख लेता की वो कितनी भी कोशिश कर ले क़यामत तो आनी ही है। खैर वो भी ऊपर जाके मज़े ही लूट रहा होगा। नीचे वालों को भी संतोष हो गया की उन्होंने अपने हाथों ये नेक कार्य किया। अगर किसी दैवीय प्रयोजन से ये सम्पन्न हुआ होता तो इतने घने संतोष की प्राप्ति असंभव हो जाती। हमारे आदरणीय नेतागण भी इसीलिए शीतकालीन सत्र की ऐसी तैसी कर रहे हैं कि जब दुनिया ख़त्म होनी ही है तो कोई अच्छा काम करने से क्या फायदा। मैं तो कहता हूँ जिसको जितना पाप करना है कर लो यही समय है। मैं भी चला कुछ छूटे हुए पापों को पूरा करने। मेरा मतलब है चप्पू का जुगाड़ करने।
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