Thursday, November 22, 2012

फुर्र

बहुत दिनों के बाद आज जब कुछ लिखने बैठा तो लगा की शब्द ही सारे कहीं छुप से गए हैं।  घंटो मशक्कत की सिर धुना और निकला कुछ नहीं। जैसे गधे के सिर से सींग गायब होती है वैसे ही मेरे प्यारे से (गधा न समझिएगा ) भेजे से सारे मुद्दे ही फुर्र हो गए।  माँ सही कहती थी लिखा करो भले ही क ख ग घ लिखना पड़े तो क्या।  अब देखो क्या उगला है शायद मैं भी न समझ पाऊं।  खैर अब जब शुरू किया है तो पूरा तो करना ही पड़ेगा।  कितना कुछ घटा है पिछले दिनो, मेरी लव स्टोरी का लेवल, मेरे बैठने के कारण  खाने का टेबल, मेरे पुण्यो का घड़ा, और कसाब को लटकना पड़ा।  जितनी ख़ुशी इस देश के लोगों को कसाब के जाने की है उतनी तो कभी दीपावली या और किसी त्यौहार की नहीं हुई।  अब समझ आया की जब हम सबके गॉर्जियस बाबा रामदेव ने भ्रस्टाचारियों को फ़ासी देने की बात कही थी तो सरकार के अन्दर इतनी उथल-पुथल क्यों मच गयी थी।  बेचारे डर गए थे की कहीं उनके कारण गरीब जनता को ख़ुशी न मिल जाए।  खैर आज के लिए इतनी ही बकवास काफी है।  आगे आपके सामने हमारे पसंदीदा घटिया टीवी चैनलों की तरह और भी बकवास आइटम पेश करता रहूँगा।  तब तक के लिए अपना ख़याल रखिये और अब तक पैदा न हुई पीढ़ियों के लिए संपत्ति जमा करते रहिये।


विशेष: आपके द्वारा उपहार में  दी जाने वाली  टी.र.पी   की उम्मीद में....

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