अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Sunday, October 16, 2011
रूह
बहुत देर तक जेहन में,
तेरी आवाज़ गूंजती रही,
जिस्म धुत्त रहा खामोश रहा,
रूह हर बात सुनती रही.
खोता चला गया खुद को,
हर रोज तेरी आरज़ू में,
उखड़ी उखड़ी सांसें बेसुध,
लम्हों को गिनती रहीं.
1 comment:
Anonymous said...
kya batt hai!
February 11, 2012 at 3:31 AM
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1 comment:
kya batt hai!
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