आयी जो फासलों पर ज़रा सी रौनकें नज़र,
ज़मीर के चिराग बुझा गया आदमी.
बची थी हाथों में कुछ बूंदें हयात की,
उन्हें भी घोल के शराब पी गया आदमी.
मिली थी एक शाम ही बेसाख्ता मोहब्बत की,
उसे भी आदत से धोखा दे गया आदमी.
ज़मीर के चिराग बुझा गया आदमी.
बची थी हाथों में कुछ बूंदें हयात की,
उन्हें भी घोल के शराब पी गया आदमी.
मिली थी एक शाम ही बेसाख्ता मोहब्बत की,
उसे भी आदत से धोखा दे गया आदमी.
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