हर एक शय से यही बयान होता है,
आदमी जिंदा एक दूकान होता है.
हरे शज़र को पूछता नहीं कोई,
सुखी लकड़ियों का ऊँचा दाम होता है.
न तू मुझे सुन सके न मैं तुझे सुन सकूँ,
पत्थर की दीवारों का यही काम होता है.
आदमी जिंदा एक दूकान होता है.
हरे शज़र को पूछता नहीं कोई,
सुखी लकड़ियों का ऊँचा दाम होता है.
न तू मुझे सुन सके न मैं तुझे सुन सकूँ,
पत्थर की दीवारों का यही काम होता है.
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