Tuesday, October 18, 2011

आश्नाई

ए ज़िन्दगी मुझसे यूँ बेवफाई न कर,
दो कदम साथ चल रहनुमाई न कर.


बहुत  लम्बा है सफ़र हसरतों मेरा,
मंजिल को देख रास्तों से आश्नाई न कर.

धोखा

मत पूछिए हमारी मोहब्बत का हाल,
हम क्या कहते हैं वो क्या कहते हैं.

आईना देखकर यकीन आया,
चेहरे कितना धोखा करते हैं.

Sunday, October 16, 2011

मकाम

ज़िन्दगी हमारी एक रोज़ हमसे बुरा मान गयी,
जाने वो छुपा हुआ कौन सा राज़ जान गयी.


हमें उम्र लगी समझने में जिन्हें,
उसने नज़र भर देखा और पहचान गयी.


बदला बहुत मैंने अपनी राहों को मगर,
हर राह मुझे लेकर उसी मकाम गयी.

धारियां

रह रह के चढ़ता है बुखार क्या कीजिये,
मौसमी है ये प्यार अजी क्या कीजिये.


करती हैं चुगली ये चेहरे की धारियां,
यूँ रात भर हुजुर न जगा कीजिये.


किसी का हुस्न है नया किसी की ज़ुल्फ़ में सबा,
इन बेतुकी बातों से इश्क न किया कीजिये.

दूकान

हर एक शय से यही बयान होता है,
आदमी जिंदा एक दूकान होता है.


हरे शज़र को पूछता नहीं कोई,
सुखी लकड़ियों का ऊँचा दाम होता है.


न तू मुझे सुन सके न मैं तुझे सुन सकूँ,
पत्थर की दीवारों का यही काम होता है.

आज़्माइन्द

दिल ऐब तराश तेरे साये से हम इतना डरते हैं,
हो न खबर हवाओं को यूँ गुमनाम गुज़रते हैं.


मांग बैठे सबूत खुदा से खुदाई का,
मग्रूर आज़्माइन्द भी कभी सुधारते हैं.


जिसने होठों पर रखली एक बूँद भी शराब की,
वो पीने वाले फिर किस रोज़ मुकरते हैं.

जिंदा

मेरे हाथों में जो है तेरा चेहरा है,
कुछ बोल सही की तू जिंदा ही लगे.


आये थे तेरे शहर हम बहारों की तलाश में,
देखा जो अब तक आँखों ने खिज़ा ही लगे.


यूँ तो अक्सर हमें अपना हमनफस कहते थे वो,
चले जो एक रोज़ हमारे साथ तो जुदा ही लगे.

आदमी

आयी जो फासलों पर ज़रा सी रौनकें नज़र,
ज़मीर के चिराग बुझा गया आदमी.


बची थी हाथों में कुछ बूंदें हयात की,
उन्हें भी घोल के शराब पी गया आदमी.


मिली थी एक शाम ही बेसाख्ता मोहब्बत की,
उसे भी आदत से धोखा दे गया आदमी. 

रूह

बहुत देर तक जेहन में,
तेरी आवाज़ गूंजती रही,
जिस्म धुत्त रहा खामोश रहा,
रूह हर बात सुनती रही.

खोता चला गया खुद को,
हर रोज तेरी आरज़ू में,
उखड़ी उखड़ी सांसें बेसुध,
लम्हों  को गिनती रहीं.