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Sunday, October 16, 2011

मकाम

ज़िन्दगी हमारी एक रोज़ हमसे बुरा मान गयी,
जाने वो छुपा हुआ कौन सा राज़ जान गयी.


हमें उम्र लगी समझने में जिन्हें,
उसने नज़र भर देखा और पहचान गयी.


बदला बहुत मैंने अपनी राहों को मगर,
हर राह मुझे लेकर उसी मकाम गयी.

Monday, August 1, 2011

कतरन

रोजनामचे से ज़िन्दगी के एक रोज़,
अपने ही हाथों संवारा एक  पन्ना,
खुदा ने यक ब यक बेज़िल्द कर दिया,
गोया उसमें लिखे लफ्ज़ कहानी को तफ्सीली दे रहे हों,
बाकी पन्ने खामोश उसकी कतरन सीने से लगाये बैठे हैं....