अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Saturday, February 11, 2012
बात
वो सामने आये तो मगर , हम आँखों के जाम भर न सके,
दिल में थे जो जज़्बात, उनको पैगाम कर न सके,
रुके रुके से थे कदम, बेकाबू थी हर धड़कन,
की होंठ काँपे भी तो क्या, जो कहने थी बात वो कह न सके.
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