अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Sunday, February 12, 2012
अश्क
तेरी आँखों के अश्क मेरी आँखों से गिरते रहे,
कुछ इस तरह हम जीते रहे मरते रहे,
रह रह के जो उड़ती थी खुशबु दामन से हयात की,
उन सोंधे लम्हों को अब हर लम्हा तरसते रहे...
Saturday, February 11, 2012
फ़साने
लोग कहते हैं की मुझे जिक्रे मोहब्बत करना था,
जो था मेरे दिल का हाल उनसे बयान करना था,
मेरे ख्यालों में भी ये बात कई दफा आई थी,
इसी तखय्युल में कई रातें जागते हुए बितायी थी,
फिर भी लरजते होंठ रुक जाते थे ये बताने में ,
क्युकी डर था उसका नाम भी आएगा मेरे फ़साने में.
बात
वो सामने आये तो मगर , हम आँखों के जाम भर न सके,
दिल में थे जो जज़्बात, उनको पैगाम कर न सके,
रुके रुके से थे कदम, बेकाबू थी हर धड़कन,
की होंठ काँपे भी तो क्या, जो कहने थी बात वो कह न सके.
Thursday, February 9, 2012
रंज
रंज साँसों को है मुझसे तेरे जाने के बाद,
कितना भी रोया करू ये ठंडी नहीं होती.
भटकती रही उम्रें यूँ ही सरे बियाबान,
सजाओ कितना ही राहें मंजिल नहीं होती.
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