अल्फ़ाज़
एक नज़रिया !
Monday, August 1, 2011
सबब
बड़ी शिद्दत से मैं तेरी राह तकता रहा,
रुत बदलती रही मैं ठहरा रहा,
कहती रहीं हवाएं वो न आएगा अब,
मैं फिर भी तेरे न आने का सबब खोजता रहा,
मसरूफियत तेरी अपने कामों में बढ़ गयी है शायद....
कतरन
रोजनामचे से ज़िन्दगी के एक रोज़,
अपने ही हाथों संवारा एक पन्ना,
खुदा ने यक ब यक बेज़िल्द कर दिया,
गोया उसमें लिखे लफ्ज़ कहानी को तफ्सीली दे रहे हों,
बाकी पन्ने खामोश उसकी कतरन सीने से लगाये बैठे हैं....
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