Monday, April 5, 2010

दाने

भींच रखी है मुट्ठी मैंने,
वक़्त को फिसलने से रोकने को,
दाने दाने कर वो फिर भी खिसक रहा,
उड़ उड़ के साँसों के संग,
आँखों में है धस रहा.

Friday, April 2, 2010

नशा

मैंने तुझको देखा है जब से ,
कुछ खो गया है मुझसे ,
हर लम्हा तेरी तलब सी है ,
बदली नहीं है ज़िन्दगी ,
फिर भी अलग सी है.

Thursday, April 1, 2010

राही

लफ़्ज़ों के समंदर का राही हूँ,
कागज़ पे बिखरी स्याही हूँ,
हूँ अक्स अपने ही अरमानो का,
कुछ उम्मीदों का साकी हूँ.


खेलते हैं जज़्बात मेरे सीने में,

ठहरे हैं अश्क आँखों के ज़ीने में,
है जो ये जाल साँसों का,
कुछ निकला हूँ उससे कुछ बाकी हूँ

किस्सा

ज़िन्दगी को जब देखा करीब से,
तो     ये      एहसास     हुआ,
हँसना  रोना गिरना संभलना,
यही    तो     ज़िन्दगी     है,
फिर   भी   डरते    हैं    हम ,
जाने किससे या शायद खुद से ,
कहीं कुछ गलत ना हो जाए,
कुछ    टूट     ना     जाए ,
कुछ    छूट     ना     जाए.