Wednesday, January 9, 2019

तंज

धुआँ ही धुआँ सबकी आँखों में भर जाएगा,
और फिर अश्क़ों में घुल के उतर जाएगा.

जिन्हें रास्तों का इल्म था वो भटक गए,
जो भटका हुआ है वो गुज़र जाएगा.

आज हर एक खाने में कई मोहरें हैं,
कल हर एक खाना सिकुड़ जाएगा.

जो सरे बाज़ार सच का ढोल पीटता है,
जब उससे सच पूछोगे तो मुकर जाएगा.





चाक

तमाम कोशिशों के बाद भी ना गढ़ा गया,
कैसा कुम्हार है, चाक पे रेतीली मिट्टी चढ़ा गया.
तुम तो अजनबी हो फिर भी तुम से अड़ जाता है,
हमसे तो इश्क था, फिर भी ना उससे अड़ा गया.
ये जो तुम आज मेरे चेहरे पे पढ़ रहे हो,
ये तो सारी उम्र किसी से भी ना पढ़ा गया.
जो बहके हुए हैं उन्हें रास्तों का इल्म ना दो,
जिन्हें मालूम थे रास्ते उनसे ही कहां बढ़ा गया.
अब मिले गरमाहट तो शायद कफ़न में मिले,
ये झीना सा ज़िन्दगी का शाल हमसे ना ओढ़ा गया.